JÜRGEN JANKOFSKY
युर्गेन यान्कोफ़स्की
आना हुड
हमारी दुनिया के १९ भाषायों में बच्चों के लिए एक परिदृश्य
एक
"यह अन्याय है" बोल उठी आना, "यह हीन है, बहुत हीन!"
टी.वी. पर एक शरणार्थी चलकर समुंदर पार कर रहा था। वे एक बच्चे को उठा कर ला रहे थे, वह एक मरा हुआ बच्चा था। सावधानी से उन्होंने उस बच्चे को किनारे पर रखा, घुटनों को मोड़कर वे झुककर बैठे और उन्होंने आसमान की ओर देखा। पर्यटक आए - स्नान के कपड़ों में और बच्चे भी पास आए, सबने उसे देखा। नहीं ये सिनेमा नहीं, ये सब सच और ये घटनायें अभी घटी हैं ।
आना ने दोनों हाथों से अपनी आखों को ढक लिया था और अपने सिर को हिलाया। वे तस्वीरें उसके दिमाग से फिर भी नहीं गई। और समुंदर में और भी शरणार्थियाँ तैर रहे थे। और दिगंत पर डूब गई एक और नाव।
हालाँकि, यह पहली बार नहीं था जब उसने एक ऐसा दृश्य देखा हो, लेकिन आज उसको ये सब बहुत प्रभावशाली लग रहा है।
समाचारवाचक ने कहा कि जो दान करने के इच्छुक हैं, वे आगे आकर दान कर सकते हैं। वे कभी भी आ सकते हैं।
आना अपने कमरे कि ओर गई और उसने अपने पिगिबैंक को हाथ में उठाया। कल ही उसे उसके दादाजी और दादीमाँ ने छुट्टियां बिताने के लिए उसको पैसे दिए थे। "शुभ-यात्रा! खुब आनन्द करना!" पर वह करना उसकी सोच के बाहर था।
वह सोच भी नहीं सकती थी कि वह पेड़ों की छाँव में बैठकर छुट्टियां बिताएगी और वैसी ही एक और घटना घट जाएगी, जैसी उसने टी.वी. पर देखा था... नहीं! यह नहीं हो सकता!
उसने अपने पिगिबैंक को अपने सिर के उपर उठाया और -धम! वह नीचे ज़मीन पर गिड़कर टूट गया। सब पैसे इधर-उधर फैल गए।
"यहाँ क्या हुआ?" माँ भागती हुई रसोइघर से आई।
"यह तुने क्या किया?"
"मैं दान करना चाहती हूँ", आना ने खिड़की से बाहर कि ओर इशारा करते हुए ये बोला। "तुम मेरी मदद करोगी?"
"हाँ, लेकिन..."
"हीन, बोली आना, "कुछ लोग सुर्य की गर्मी का आनन्द ले रहे हैं और दूसरे कुछ लोग मारे जा रहे हैं-इसका एक अंत होना ज़रुरी है।"
दो
रबिन ने ख़ाली हाथ से बबलगम के यंत्र को मारा।
"बेकार" भाग गया, "और कितने पैसे मुझे इस में डालना पड़ेगा? क्यों, कैसे भी बाहर नहीं आ रहा है?"
आना उसको ध्यान से देख रही थी, कैसे वह ग़ुस्से में आकर अपने पाकेट में पैसे ढूंढ़ रहा था। लेकिन ऐसे में जैसे ही रबिन एक और सिक्का उस यंत्र में डालनेवाला था, आना उसको बुलाती है, बोली: "रुको!"
आनाने अपनी क्लास के दूसरे बच्चों को पुछा, दुनिया के बच्चों से पुछा कि क्या वे अन्याय के ख़िलाफ कुछ और करना चाहते हैं या नहीं, जैसे कि मर्मपीड़ा, दर्द और दुःख. लेकिन सबके पास कोई ना कोई बाहाना त्यार था, कोई बोला कि वह अपना बटुआ घर भूल आया है, तो कोई बोला के उसके पास समय नहीं है, कोई बोला के उसने पढ़ने जाना है और कईयों ने कहा कि वे अपने माता-पिता से अनुमति लेकर फिर ही कुछ बोल पायेंगे, फिर कुछ बच्चों ने ऐसा दिखावा किया जैसे अगले दिन उन्हें बहुत काम हो।
रबिन की लालची नज़र थी आना के बैग में छिपाई हुई बबलगम पर, जबकि वे एक दूसरे में लिपटि हुई थीं, लेकिन फिर भी उसकी नज़र उन्हीं पर थी। बहुत धर्य के साथ वह आना की बातें सुन रहा था। कैसे टि.वी. पर दर्दभरी और कठिन परिस्थितियों की तस्वीरें दिखाई जा रही थी। और सचमुच उसने सब बातें सुनकर अपने पैसों से एक सिक्का निकालकर आना के पिगिबैंक में डाल दिया।
तीन
आनाने उस पैसे को भी दान कर दिया, जो उसके पिताजी ने उसे गणित के एक कठिन सवाल को हल करने पर उसको पुरस्कार के रूपा में दिया था।
उसने साथ ही अपने अंकल, आंटि, कज़िन, पड़ोसियों, अपने अध्यापकों और अध्यापिकायों और यहाँ तककि अपरिचित लोगों से भी अनुरोध किया कि वे सब दान और सहायता के लिए आगे आयें।
तबभी वह तस्वीर, दृश्य और वे दःखभरी ख़बरें उसके दिमाग पर एक छाप छोड़ गयी थी। हाँ, हरदिन यह परिस्थिति बड़ रही थी, कम नहीं हो रही थी, और यही परिस्थिति, यही दृश्य और भी भयंकर हो उठी थी - बहुत सारी नाव डूब रही थीं, काफ़ी लोग मारे जा रहे थे और देखनेवालों की भीड़ भी बढ़ रही थी।
चार
रबिन आना से पुछता है कि क्या उसने कभी एक विख्यात, पृथवी-विख्यात वक्ति का नाम सुना है: जो हरे रंग के कपड़े पहनते थे, तीर-कमान का निशाना उनसे कभी नहीं चूकता था, एक वीर, एक साहसी वक्ति, बुद्धिमान, वे अमीरों का धन छिनकर गरीबों को दिया करते थे...
"रबिन हुड?"
" बिलकुल ठीक ", रबिन ने उसे कहा ।
पाँच
आना गंभीरता से चिंता कर रही थी।
" तुम्हारा मतलब है ", अंत में उसने पुछा "आज अगर अमीर लोग ग़रीबों को इतने पैसे देतें कि वे अपना नाशता खरीद पाते, स्कूल जा पाते, एक नौकरी ढूंढ़ पाते, तब जाकर सब शांति से रह पाते, फिर किसी को भी अपना घर छोड़कर भागने कि ज़रुरत नहीं पड़ती?"
"मुझे मालूम नहीं", रबिन बोला।
"मैं तीर-कमान चलान कहाँ सिख सखती हूँ?" आना ने पुछा।
"मुझे मालूम नहीं", रबिन बोला।
छह
रबिन ने ध्यान किया के आना के चहरे में एक बदलाव हुआ है - पहले उसकी नज़र में आया आना का हरा बो, जो उसने अपने बालों पर लगाया था, फिर हाथों के नाखूनों पर हरी नेल-पालिश और अंत में एक हरा स्वेटर, फिर एक हरा स्कर्ट और हरे जूते और अंत में उसके होंठ, हरे रंग कि थी उसकी पल्कें, हरी घड़ी, हरी चुड़ियाँ, हरी माला और हरी अंगुठी।
हाँ, वह और ज़्यादा हरी होने लगी। उसका स्वभाव गोपनियतापूर्ण और उसे देखकर लगता था कि वह किसी बहुत ही गंभीर सोच में थी, वह हँसती नहीं थी, उसका कहीं आना जाना नहीं था, रबिन के साथ भी बहुत कम बातें करती थी।
शायद उसने ध्यान भी नहीं किया था कि रबिन अचानक से बेसकैप पहनकर स्कूल आने लगा था, अगर अध्यापकों ने रबिन को बार-बार टोका ना होता, कि क्लास चलते समय वह उस टोपी को उतारकर रखे।
"हरा रंग तुम पर जचता है", आना बोली।
"तुम पर भी", बोला रबिन।
दोनो ही हँसे।
"रबिन हुड" हमेशा बहुत ख़ुशमेज़ाज रहता था", रबिन बोला, "हमेशा उसके साथ बातें की जा सकती थी, उसका मन हमेशा खुश रहा करता था।"
"ये सब तुम्हे कहाँ से पता चली?
"अरे मैंने ज़रा इंटरनेट पर और इधर-उधर पढ़ा है।"
"अच्छी बात", बोली आना, "और आगे?"
"रबिन हुड के लिए अकेले कुछ भी करना संभव नहीं होता। "
उसके वफ़ादार साथियों और उसके दल के बिना कुछ भी नहीं हो पाता। उसको अकेले कभी इतना सोना नहीं मिला पाता, जितना सबके साथ मिला था । वह कभी भी अकेला सही न्याय के लिए नहीं लड़ पाता, कभी नहीं, नहीं!"
"हुँ", आना सोचने लगी, "तुम कहना चहते हो कि...?"
"बिलकुल", बोला रबिन।
" तो फिर", यह कहकर आना ने रबिन के सामने एक हरी अंगुठी पकड़ी और वह बोली "स्वागत है तुम्हारा आना-हुड के दल में!"
सात
आना ने इंटरनेट पर पढ़ा, तो उसने देखा कि रबिन-हुड और उसके साथी “कानून के ख़िलाफी” कहलाये जाते थे। और उनके नियम अनुसार वे अमीरों से उनके पैसे लेकर उनको ग़रीबों में बाँट देते थे ।
फिर उसने पढ़ा कि वे अमीरों के सब पैसे या गहने नहीं लूटते थे, सिर्फ आधा ही लुटा करते थे। वे उन्हे अपनी ज़रुरतों के लिए नहीं लूटते थे।
अंत में उसने पढ़ा एक सौ साल पहले इंगलैड में रबिन-हुड-खेल नामक एक खेल हुआ करता था। वहाँ गाना और नाच होता था, कवितायें सुनाई जाती थी, नाटक होते थे, बैलेंस का खेल होता था, जादू की कला का प्रदर्शन होता था और अमीर लोग अपनी ख़ुशी से गरीबों के लिए बहुत पैसे देते थे। पहली मई को रबिन-हुड-खेल हुआ करता था।
आठ
"बहुत अच्छे", बोल उठा रबिन, "आज ही तो है पहली मई, आओ"!
"लेकिन कहाँ ले जाना चाहते हो?"
"वहाँ, जहाँ सब अमीरों को जाना चाहिए, वहीं जहाँ पैसे हैं, बैंक में!"
और यह कहकर आना का हाथ पकड़कर शहर के बिच में से दौड़े दोनो।
हाँलाकि, बैंक के सामने खड़े थे एक ओर बुढ़े आदमी और दूसरी ओर बुढ़ी औरतें, जिन्होंने अपने हाथों में लाल रंग के बड़े बैनरों को पकड़ रखा था और साथ ही बहरा कर देनेवाले विसल की आवाज़ सुनने में आ रहीं थी। दूसरी ओर खड़े थे कुछ कम बुढ़े आदमी और औरतें, उनके अपने हाथों में काले रंग के झंडों और बड़े-बड़े बैनरों को पकड़कर। वे दूसरे दल के लोगों को आक्रमण करने के कोशिश कर रहे थे। इन सबके बीच में पुलिस भी थी। और जैसे ही सब थोड़ी-थोड़ी साँस ले रहें थे, तभी मंच पर एक बुर्ज़ुग वक्ता पैसों कि ज़ोर के बारे में बाताने आए। वे बोले पुरी दुनिया के श्रमिक किस तरह के महनत करने पर मजबूर हुए थे। और एक कागज़ के टुकरे पर से पढ़कर, तुतलाते हुए कई बातें कह रहे थें। आना और रबिन को ये सारी बातें ज़रा भी समझ नहीं आई। उनकी इच्छा के बावहूद भी नहीं।
इन दोनों के नाचने, गाने, कविता सुनाने, नाटक करने से पहले ही एक दल के लोगों ने दूसरे दल पर धाबा डाला:
"यहाँ कोई खेल या कार्यक्रम नहीं होगें"!
"यहाँ पहली मई है-विश्व श्रमिक दिवस!"
"समझे?"
नौ
ध्यान आकर्शित कर रही हूँ। बच्चों! आना ने इंटरनेट पर लिखा: अन्याय के ख़िलाफ कौन है? कानून विरोधियों का समर्थन कौन-कौन करता है? हमने आना-हुड नामक एक दल का गठन किया है। क्या तुम हमारा साथ दोगे? फिर हमे बताओ!
दस
ज़्यादा समय नहीं लगा और आना को पुरी दुनिया से इंटरनेट पर चिठ्ठियाँ मिलीं।
पहले आटो ने लिखा: मैं तुम्हारे साथ हूँ।
फिर आखमेद, आर्मेन, आमो, सोभानी और अकिरा ने लिखा।
मरिया जानना चाहती थी, कि क्या वह आना के संदेश को दूसरे भाषायों में अनुवाद कर सकती है या नहीं।
ज़रूर!
स्वेतलाना जानना चाहती थी, कि क्या वह आना के संदेश को दूसरे बच्चों को दे सकती है या नहीं।
ज़रूर!
इंदिरा जानना चाहती थी, कि क्या वह इसी संदेश को अनुवाद के बाद दूसरे बच्चों को भेज सकती है या नहीं।
ज़रुर! ज़रूर! ज़रूर!
बर्फ़ से त्यार गोले के जैसे एक से दूसरे तक यह संदेश पौंछ रहा था: अब गोसो और स्लाटको, हाईलो, बागांश्री, मानेन और थीजेस, आगनेटा, एउले और सारा, जोसे, जान, गेयोर्गी और जियोभानी, लिङ, रुई, जिंगिस, मलाईका, भाईनो, ज़ावी, याला, राफिनहिलदुर, बिङटाङ, उदेसेस, भालूयू, नायरा, मोभनि, अर्नेस्टो और यानको, जनेट, जसमिन, कारम्बा, पैट्रिक, रेटो, नानूक, नूनूय, सेन, ज़ाख़िरी, नरुमोल, होया, गाबीजा, राडू, टेनजिन आर सु-जूङ- ये सब भी दल के साथ जुड़ना चाहते थे।
स्वागत है!
ग्यारह
" तुमने पढ़ा है?” रबिन ने पूछा।
"हमारे दल के नये सदस्यों ने कौनसी नयी सोच हमारे सामने रखी हैं? हमे क्या करना चाहिए?”
"ज़रुर", बोली आना, "देखते हैं, हम क्या कर सकते हैं।"
बच्चों के हिसाब से हर एक बच्चा, जो बिना नाश्ता किए स्कूल जाता है, उसे एक निमंत्रण दिलवाना चाहिए और खाना कम से कम तीन स्तर का होना चाहिए: एक सूप, लंच और एक मिठाई।
अभी!
जब तक दुनिया के सब अमीरों से टैक्स नहीं लिया जाएगा, तब तक सब बच्चे हड़ताल पर रहेंगे। जब तक सब पैसेवाले अपने अपने वेतनों का आधा हिस्सा नहीं देंगे, तब तक विश्व कोई भी बच्चा गृहकार्य नहीं करेगा, ना तो कोई क्लास में जाएगा, साथ ही साथ स्कूल जाकर पढ़ाई भी बंध रखेगा और यह हड़ताल चलती रहेगी। अचानक से!
अगर दुनिया के सब इनसान: पतले-मोटे, काले-गोरे, स्त्री-पुरूष, अमीर-ग़रीब, पीले-ब्राउन, हरेक देश के हरेक इनसान को एक सा वेतन मिले, तो फिर ये भूखमरी नहीं रहेगी, सबको रहने की जगह मिलेगी, सब स्कूल जा पायेंगे, सबको एक नौकरी मिलेगी और उसी नौकरी के वेतन से वे सब अपने लिए अपनी मर्ज़ी मुताबिक कुछ भी ख़रीद सकेंगे और वे अपने ही घरों पर रह पायेंगे। अगर दुनिया के सब अमीरों के पैसे एक-साथ किया जाए तो दुनिया कि सब समस्यायों का समाधान हो जएगा - ठिक है न?
बारह
"कृपया नम्र रहो!"
रबिन आना का परिचालन कर रहा था। आना पहले जैसे हरे रंग में सजकर, उस बड़े बैंक के सामने खड़ी होकर इधर-उधर चल रही थी।
"और एक कदम आगे आना। हाँ, और थोड़ा बिच में, यह ठिक है, बहुत अच्छे।"
और उसके बाद रबिन ने अपना हरा बैसकैप आना को पहना दिय और क्लिक! और क्लिक! और क्लिक से उसकी तस्वीरें लेने लगा, बार-बार, कई बार उसने आना की तस्वीरें ली।
सबसे जो तस्वीर अच्छी थी, उसको उसने तुरंत इंटरनेट पर अपलोड किया: ढ़ेरों शुभकामनाएँ समेत आना हुड!
घर आकर आना ने जल्दी लिखा: जल्द ही आ रही है पहली जून - अंतराष्ट्रीय बालदिवस। अभी से हमारे इस ख़ास दिन का नाम होगा रबिन-हुड-दिवस। हम हरे रंग में सजेंगे। कुछ भी हरे रंग का सबके पास ज़रूर होगा: एक हरा जुराब, एक हाथ में पहननेवाला बैण्ड या फिर एक हरी पैंसिल या एक हरा पत्ता या फिर एक घास की डंठल-हम रबिन-हुड-दिवस पर वहाँ हरे रंग में सजकर जायेंगे, वहाँ जहाँ पैसा है: बैंक में या तो फिर अमीरों के घरों पर, बिलकुल वैसे ही जैसे हम हेलोवीन पर घरों पर जाने का साहस रखते हैं। हम मीठे या खट्टे की मांग नहीं करेंगे। कोई उपहार भी नहीं मांगेंगे, ये सब छोड़ हम न्याय कि माँग करेंगे। हाँ, सबके लिए! जो हमारा मज़ाक उड़ायगा या तो फिर हमारे रास्ते में आकर खड़ा होगा, उसकी एक तस्वीर उतारकर हम इंटरनेट पर डालेंगे - यही हमारा उद्देश्य है। ताकि अगले रबिन-हुड-दिवस पर और ज़्यादा हरे बच्चे न्याय की माँग करें। तब जाकर, उससे अगले पर और ज़्यादा बच्चे न्याय के लिए लड़ेंगे और ज़्यादा बच्चों को न्याय मिलेगा। बिलकुल बर्फ के गोले से बने स्नोमैन की तरह बढ़ेगा इस मांग का आकार और अंत में उससे तैयार होगा एक प्रकाण्ड बर्फ के गोले का स्नोमैन।
रबिन ने आना से पुछा, कि क्या वह भी कुछ लिख सकता है।
"ज़रूर!"
उसने लिखा: भूलना मत हम बड़े होंगे- और तब हम सब विश्व पर राज करेंगे!
जल्दी ही विश्व के दूसरे बच्चों ने उसपर अपनी सोच भेजना शुरू किया: हाँ, हाँ, हाँ - हम सब साथ हैं।
कोई यह जानना चहता था, तो कोई कुछ और: जैसे, कि हरा चश्मा पहनने कि अनुमति है या नहीं, या फिर बैनर बनाने कि अनुमति है या नहीं या फिर विडिओ लेने कि अनुमति है या नहीं।
हाँ, हाँ, हाँ!
और फिर पहली जून को रबिन-हुड-दिवस था, आना ने सिर्फ यह लिखा: शुरू करो!
Übersetzung: Bhaswati Chatterjee / अनुवाद: भास्वती चटर्जी